इस दुनिया की रीत यही ।
नन्हे फूलो की बगीया से प्रीत यही ।।
जब तक खिलकर तु रहता है ।
कीटो के डंग तु सहता है ।।
चार पहर के इस जीवन में ।
कितनी बार सहमते हो ।।
माली के इस मुख से ।
तुम क्यों नहीं कुछ कहते हो ।।
इसी कारण तुम वन नहीं ।
उपवन कहलाते हो ।।
इतना कष्ट सच मे कम नहीं ।
जो तुम सह जाते हो ।।
इस कलयुग के कल की ।
तुम आस मत करना ।।
अपने काँटो के अलावा ।
किसी पर विश्वास मत करना ।।
नहीं तो तुम भी मुझ जैसे ।
देखते रह जाओगे ।।
सूर्य ढलने से पहले ही ।
तुम तोड़ लिए जाओगे ।।
इस दुनिया की रीत यही ।
नन्हे फूलो की बगीया से प्रीत यही ।।
जब तक खिलकर तु रहता है ।
कीटो के डंग तु सहता है ।।
गुंजन द्विवेदी
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