Sunday, October 14, 2018

एक फूल (कविता)

इस दुनिया की रीत यही ।
नन्हे फूलो की बगीया से प्रीत यही ।।
जब तक खिलकर तु रहता है ।
कीटो के डंग तु सहता है ।।

चार पहर के इस जीवन में ।
कितनी बार सहमते हो ।।
माली के इस मुख से ।
तुम क्यों नहीं कुछ कहते हो ।।

इसी कारण तुम वन नहीं ।
उपवन कहलाते हो ।।
इतना कष्ट सच मे कम नहीं ।
जो तुम सह जाते हो ।।

इस कलयुग के कल की ।
तुम आस मत करना ।।
अपने काँटो के अलावा ।
किसी पर विश्वास मत करना ।।

नहीं तो तुम भी मुझ जैसे ।
देखते रह जाओगे ।।
सूर्य ढलने से पहले ही ।
तुम तोड़ लिए जाओगे ।।

इस दुनिया की रीत यही ।
नन्हे फूलो की बगीया से प्रीत यही ।।
जब तक खिलकर तु रहता है ।
कीटो के डंग तु सहता है ।।

               गुंजन द्विवेदी

हमारा भारत (कविता)

भारत के रसना मे अनोखी रास है।
तुम मे भी कुछ खास है।।
ममतामयी माँ से रीझे हो तुम ।
गर्वमान पिता के द्वारा सिंचे हो तुम।।

पहली लाली संग चरणों का आशीर्वाद मिलता।
हर सुपूत मे भारत का नाम मिलता ।।
सूर्य  पर जितना विश्वास आज है।
दादा को अपने पोते पर उतना नाज है।।

यहाँ की मिट्टी मे कोई राज है।
यहाँ का बच्चा बच्चा विश्व का सरताज है।।
बिरजु हो या अब्दुल , कमाया इतना नाम है।
स्वयं उतर आए यहाँ भगवान राम है।।
यहाँ हर दिन , हर पल एक त्योहार  है।
धर्मों की तो गाथा , गाता संसार हैं ।।

एकता , सद्भावना से अमूल्य यहाँ की रीति हैं ।
बेटी कल्पना तो हार कर भी जीती है ।।
हमारी सेना से विपक्षी भी भयभीत है ।
किसी ने सुनी न देखी , ऐसी रणनीत हैं ।।

                       गुंजन द्विवेदी ।

आसुँ (कविता)

एक आस की प्यास अधुरी
आसुँ बन बह जाता हूँ ।
कोई न पुछे मुझको तब
रहमत माँगत बेबस बन जाता हूँ ।

इस छोटे से आशीये का
आसमान तक कोना-कोना देखा है ।
फिर भी तुझे ढुढँना पड़ता है
वह खुशी तेरी कौन सी रेखा है ।

इस फकीर की तु भी लकीर है
कब तक तु मेरा ऐसा नसीब है ।
खाली पन्नों की तु कैसी किताब
सब जानकर समझने वाला भी बेताब ।

एक आस की प्यास अधुरी
आसुँ बन बह जाता हूँ ।
कोई न पुछे मुझको तब
रहमत माँगत बेबस बन जाता हूँ ।

इस लोर की चमक भी
सुख अवसर पर कुछ और है ।
कही इससे मातम छाया
जहाँ रोने का शोर है ।

रूठ तो  तुम भी गए हमसे
इसलिए अंदर ही रहते हो ।
लोग कहते है रोता नही हूँ मैं
तुम कितना कुछ सहते हो ।

एक आस की प्यास अधुरी
आसुँ बन बह जाता हूँ ।
कोई न पुछे मुझको तब
रहमत माँगत बेबस बन जाता हूँ
     
         गुंजन द्विवेदी

Friday, October 12, 2018

सिख लिया, मर कर भी जीना (कविता)

सिख लिया, मर कर भी जीना
जाना जब ,यहाँ कातिल बहुत हैं ।
बुराई करते थे , वो  कह कर
इसमें फाज़िल बहुत है ।

देख लिया इस जग ने मुझमें
नई दुनिया की नई कहानी ।
सोई किस्मत कब तक थी सोती
मिल गई , मेरे सपनो की बानी ।

क्या बताऊ , बिन आसुँ कैसे रोती है आँखें
कह कर सोजा , जग जाती थी वे रातें।
राह मे न लगते ठोकर तो
वह पत्थर भी न टकराते ।

इस दिन से पहले , हम तुम से क्या कहते
मीत रहते हुए , प्रीत से क्यों न डरते ।
दुसरो को चुप करा कर , खुद कैसे रोते
चमकने से पहले , चैन से कैसे सोते ।
 
सिख लिया, मर कर भी जीना
जाना जब ,यहाँ कातिल बहुत हैं ।
बुराई करते थे , वो  कह कर
इसमें फाज़िल बहुत है ।
                  
                           गुंजन द्विवेदी

Friday, October 5, 2018

Mentality (मानसिकता) जीवन मे मानसिकता का उपयोग ।

मानसिकता का तात्पर्य लोगों के सोचने , विचारने  के प्रारूप से है । लोगों के काम भी इसी उनकी मानसिकता पर निर्भर है कोई चाह कर भी किसी दुसरे व्यक्ति के काम ,बुरे आदतें को सुधार नही सकता केवल उसे सही मार्ग दिखाया जा सकता है लेकिन उस मार्ग पर चलना , सही तरीके से काम करना, बुरे आदतों को छोड़ना केवल उसके मानसिकता पर निर्भर हैं। व्यक्ति जिस विषय पर जैसी मानसिकता रखेगा वैसे ही उस पर कार्य करेगा।

हम मानसिकता को इस उदाहरण से आसानी से समझ सकते है कि जब सर्कस मे हाथी के बच्चे को पकड़ कर लाया जाता है तो उसे चैन से बाधँ कर रखा जाता हैं । चैन मजबूत होने के कारण उस समय वह उसे नही तोड़ पाता औऱ उसकी यह मानसिकता बन जाती हैं कि वह उससे नही टुटेगा । लेकिन मजेदार बात तो यह है कि कुछ साल बाद जब वह एक विशाल शक्तिशाली हाथी बन जाता है तब भी वह उसे नही तोड़ पाता जबकि उसके लिए वह एक कच्चे धागे के समान है । इसका कारण उसकी अपरिवर्तित मानसिकता है जिसमें चैन उससे मजबूत है औऱ वह उसे तोड़ने का प्रयास भी नही करता ।

आज के वर्तमान समय मे सभी लोगो की मानसिकता केवल अधिक से अधिक आय अर्जित करने की है लेकिन यह हमलोगो की भूल है । अर्थ केवल जीविका पार्जन के लिए ही एकत्रित किया जाता है। इस संसार मे आए औऱ अपनी मिली जिदंगी जी कर मर जाना यही जीवन नहीं हैं ब्लकि हम इस समाज मे कुछ विशेष गुण लेकर पैदा होते है औऱ जाते जाते हमें इस समाज के जनकल्याण के लिए कुछ देकर जाना होता हैं । हमें जीवन के मानसिकता के तौर पर ऐसा ही कुछ लक्ष्य रखना चाहिए अगर हम सब की मानसिकता इसी प्रकार की हो तो हम संसार को अति तिव्र गति से विकसित कर सकते है । मेरे अनुसार जैसे हम आज जितने भी प्रकार के सुविधा का उपयोग  कर रहे है उन सभी के निर्माताओ  , जनको का जीवन सफल हो चुका है । अब हमारी बारी है , कि हम अपने जीवन को सफल  कैसे बनाते है औऱ अगली पीढ़ी को क्या देते है ।

हमें जरूरत हैं अपनी मानसिकता केवल आय से हटाकर अन्य क्षेत्रों के प्रयोग मे लाने की जैसे - बेरोजगारों को रोजगार दिलाना , गरीबो को ऊपर उठने मे मद्द़ करना , जिन बच्चो को शिक्षा जैसी सुविधा नहीं मिल रही उनको शिक्षा उपलब्ध कराना । कुछ बड़ा अविष्कार करने की बात बाद मे पहले हम इन छोटे छोटे कामों को कर के हम अपना जीवन सफल बना सकते है ।

                                गुंजन द्विवेदी

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