मै आने वाले कल का सार्थी हूँ।
मैं एक विद्यार्थी हूँ।
मुझ मे कोई अंश नहीं है भय का।
लेकिन मैं लालिमा जरूर हूँ सूर्योदय का।।
इस जग को पार करने मे।
हमने तैराकी सीखा है।
कितनो को तो हमने।
नौका से पार होते देखा है ।।
अपने परिवार के खुशी का लोर हूँ मैं।
दुनिया संग अपने घर का भोर हूँ मै।
इस अँधेरे रात मे प्रकाश का आभाव हूँ मै।
लेकिन दीपक के ज्योति सा प्रभाव हूँ मैं ।।
विद्यार्थी का सीखना सर्वप्रथम धर्म है।
केवल ज्ञान अर्जित करना ही हमारा कर्म है।
सबकुछ धन नहीं ,यह हमारा भ्रम है।
फिर भी हमारे देश मे अवसर के क्या क्रम है ।।
अब बेरोजगारी नहीं,
रोजगार मे घटाव दिखाई दे रहा है ।
हमारी सरकार से केवल ,
बचाव सुनाई दे रहा है ।
यह कहने के लिए ,मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ।
क्योंकि मैं एक विद्यार्थी हूँ ।
मै आने वाले कल का सार्थी हूँ।
मैं एक विद्यार्थी हूँ।
मुझ मे कोई अंश नहीं है भय का।
लेकिन मैं लालिमा जरूर हूँ सूर्योदय का।।
गुंजन द्विवेदी
Nice poem gunjan (well done)
ReplyDeleteSuperb
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