यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।
बच्चों की छुट्टियों मे भी नजर नहीं आऊँगा
अब लोगों के फार्म हाऊस पर ही दिख पाऊँगा
शुध्द दूध, दही, घी क्या खाओगे
यहाँ तक की शुध्द आक्सीजन भी नहीं पाओगे।।
लेकिन मेरा मित है कहता, मुझे भी शहर आना है
कुछ दिन बुढी माँ का ,बोझ नहीं उठाना है
और मुझे भी बच्चों को , शहर मे पढाना है
बस यही सोचता आज हमारा जबाना है ।।
गाँव के छोटे किसानों को मत मिटाओ
क्योंकि कोई बडा, किसान नहीं दिखता
बिना अनाज के हमें से कोई
इंसान नहीं टिकता ।।
मैं कहु तो ,मेरे गांव को शहर मत बनाओ
बस कुछ सुविधा वहाँ उपलब्ध कराओ
ऐसा न हो तो ,मेरे शहर को ही गांव बना दो
भले ही एक नया GST ग्राम सर्विस टैक्स लगा दो ।।
गुंजन द्विवेदी ।
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