Monday, September 30, 2019

भिक्षु (कविता)

आज भिक्षु को सोते देखा मैंने
मेरे सामने रखा कटोरा भी पुकार रहा था
शायद वह भिक्षु सपने मे भी गुहार रहा था
आज भूखा ही सोया हूँ मैं
कभी कभी तो पुरा दिन रोया हूँ मैं।

आज भिक्षु के मन को देखा है मैंने
कोई इच्छा से सन्त बन जाता है
तो कोई समय के द्वारा भिक्षु बनाया जाता है
कुछ मक्कारो के कारण आज जरूरत मन्द को मरना पडता है
आज सच्चे भिखारी होने का भी विश्वास दिलाना पडता है।

आज भिक्षु के पिड़ा को देखा है मैंने
जहाँ बच्चों को दान का पाठ सिखाया जाता है
वही देखते ही उनसे दूर हटाया जाता है
कुछ कामचोरो का भी यही व्यापार है
जिससे दुर्व्यवहार का भिक्षु आज शिकार है ।

आज सन्त औऱ भिक्षु के अन्तर को जाना है मैंने
सन्त हो या भिक्षु ,जो प्रभु का नाम पुकार रहे है
वे सभी अपनी वृद्धावस्था गुजार रहे है
अगर मोह त्यागने की होती सन्त क्षमता
तो कोई भिक्षु वेश मे कभी न रमता ।

आज भिक्षु के भाव को महसूस किया है मैंने
सन्त को इच्छा की चाह नहीं
औऱ भिक्षु को घर ,परिवार के सपनों की राह नहीं
केवल यही भूल है उसकी,नहीं तो वह सन्त होता
घृणात्मक शब्द भिक्षु के रूप मे कभी न उसका अन्त होता ।।
                     गुं द्विवेदी

Thursday, May 16, 2019

विद्यार्थी

मै आने वाले कल का सार्थी हूँ।
मैं एक विद्यार्थी हूँ।
मुझ मे कोई अंश नहीं है भय का।
लेकिन मैं लालिमा जरूर हूँ सूर्योदय का।।

इस जग को पार करने मे।
हमने तैराकी सीखा है।
कितनो को तो हमने।
नौका से पार होते देखा है ।।

अपने परिवार के खुशी का लोर हूँ मैं।
दुनिया संग अपने घर का भोर हूँ मै।
इस अँधेरे रात मे प्रकाश का आभाव हूँ मै।
लेकिन दीपक के ज्योति सा प्रभाव हूँ मैं ।।

विद्यार्थी का सीखना सर्वप्रथम धर्म है।
केवल ज्ञान अर्जित करना ही हमारा कर्म है।
सबकुछ धन नहीं ,यह हमारा भ्रम है।
फिर भी हमारे देश मे अवसर के क्या क्रम है ।।

अब बेरोजगारी नहीं,
रोजगार मे घटाव दिखाई दे रहा है ।
हमारी सरकार से केवल ,
बचाव सुनाई दे रहा है ।

यह कहने के लिए ,मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ।
क्योंकि मैं एक विद्यार्थी हूँ ।
मै आने वाले कल का सार्थी हूँ।
मैं एक विद्यार्थी हूँ।
मुझ मे कोई अंश नहीं है भय का।
लेकिन मैं लालिमा जरूर हूँ सूर्योदय का।।
                                  गुंजन द्विवेदी

Monday, May 13, 2019

अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।

बच्चों की छुट्टियों मे भी नजर नहीं आऊँगा
अब लोगों के फार्म हाऊस पर ही दिख पाऊँगा
शुध्द दूध, दही, घी क्या खाओगे
यहाँ तक की शुध्द आक्सीजन भी नहीं पाओगे।।

लेकिन मेरा मित है कहता, मुझे भी शहर आना है
कुछ दिन बुढी माँ का ,बोझ नहीं उठाना है
और मुझे भी बच्चों को , शहर मे पढाना है
बस यही सोचता आज हमारा जबाना है ।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।

गाँव के छोटे किसानों को मत मिटाओ
क्योंकि कोई बडा, किसान नहीं दिखता
बिना अनाज के हमें से कोई
इंसान नहीं टिकता ।।

मैं कहु तो ,मेरे गांव को शहर मत बनाओ
बस कुछ सुविधा वहाँ उपलब्ध कराओ
ऐसा न हो तो ,मेरे शहर को ही गांव बना दो
भले ही एक नया GST ग्राम सर्विस टैक्स लगा दो ।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।
               गुंजन द्विवेदी ।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता ।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।

बच्चों की छुट्टियों मे भी नजर नहीं आऊँगा
अब लोगों के फार्म हाऊस पर ही दिख पाऊँगा
शुध्द दूध, दही, घी क्या खाओगे
यहाँ तक की शुध्द आक्सीजन भी नहीं पाओगे।।

लेकिन मेरा मित है कहता, मुझे भी शहर आना है
कुछ दिन बुढी माँ का ,बोझ नहीं उठाना है
और मुझे भी बच्चों को , शहर मे पढाना है
बस यही सोचता आज हमारा जबाना है ।।

गाँव के छोटे किसानों को मत मिटाओ
क्योंकि कोई बडा, किसान नहीं दिखता
बिना अनाज के हमें से कोई
इंसान नहीं टिकता ।।

मैं कहु तो ,मेरे गांव को शहर मत बनाओ
बस कुछ सुविधा वहाँ उपलब्ध कराओ
ऐसा न हो तो ,मेरे शहर को ही गांव बना दो
भले ही एक नया GST ग्राम सर्विस टैक्स लगा दो ।।
        गुंजन द्विवेदी ।

Wednesday, May 8, 2019

तुमको देख रोम भी हर्ष मनाता ।।

तुमको देख रोम भी हर्ष मनाता
इस भाव को ओठ भी रोक न पाता
जाने तुम कैसी बला हो
ईश्वर की अनोखी कला हो

तुम्हारे नज़दीक आकर
अज़ीब खुशी का आलम रहता है
बातें तो बहुत है
पर मन ही कहता रहता है

अपनी सुन्दरता का हमें भी राज दे
वरना मेरी ज़िन्दगी आकर साज़ दे
तुम मे हमने अपने को देखा है
क्या हम भी तेरे हाथ की रेखा है

हर एक पल मे तेरी आस है
मेरे अपनो के बाद
तु दुसरी जीने की सासँ है
न जाने कैसा यह एहसास है

तुमको देख रोम भी हर्ष मनाता
इस भाव को ओठ भी रोक न पाता
जाने तुम कैसी बला हो
ईश्वर की अनोखी कला हो ।।
                            गुंजन द्विवेदी

Friday, February 22, 2019

तु बिन लिखी कैसी किताब(कविता)

तु बिन लिखी कैसी किताब है
बिन लफ्जो की कैसी जुबान है
शायद तु मेरे आसुँओ का हिसाब है
नहीं तो मेरे जख्मो का निशान है ।।
मैं भी बनुगाँ लोगों की चाह
लोग अपनाएँगे मेरी राह
कुछ पढेगे मेरी कहानी
साकार होगी मेरी रात सुहानी।।
सब याद करेंगे बात पुरानी
कुछ को पडेगी आखँ चुरानी
मेरी हार की यही हार होगी
फिर तरक्की की ही बहार होगी ।।
जिंदगी तुझसे आस न हो
अपने पर इतना विश्वास हो
बिन दाग तो चाँद न हो
चाहे वो कोई भी मास हो ।।
अब सुलझा इस पहेली के हल को
सवार दे मेरे आने वाले कल को
करना न पडे मुझे दुनियाँ सा छल
मुझे मिले बस मेरे कर्मो का फल ।।
तु बिन लिखी कैसी किताब है
बिन लफ्जो की कैसी जुबान है
शायद तु मेरे आसुँओ का हिसाब है
नहीं तो मेरे जख्मो का निशान है ।।
                                           गुंजन द्विवेदी

Thursday, February 21, 2019

भाग्य (कविता)

ज्ञान की बोछार मे
भीगा आज विश्वास है।
कर्म की आड़ मे
पहचाना तु भाग्य है।।

किसी महान की रचना मे
तु देर लेकिन दुरूस्त है।
इस परिणाम के पीछे
तु राज बहुत जबरदस्त  है।।

सफलता तक पहुँचने से पहले
करनी  पडेगी तम्हारी उपासना
आज भी प्रभु तुम्हारी
हर प्राणी मे है वासना।।

जाने कब मेरे अक्षरो को
शब्द मिलेंगे ।।
जहाँ मेरे सपनों के
घर रहेंगे ।।

मेरे पन्नों पर भी
एक कहानी होगी
मेरी पहचान भी
अब न अनजनी होगी ।।
                                
ज्ञान की बोछार मे
भीगा आज विश्वास है।
कर्म की आड़ मे
पहचाना तु भाग्य है।।
                             गुंजन द्विवेदी

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