ज्ञान की बोछार मे
भीगा आज विश्वास है।
कर्म की आड़ मे
पहचाना तु भाग्य है।।
किसी महान की रचना मे
तु देर लेकिन दुरूस्त है।
इस परिणाम के पीछे
तु राज बहुत जबरदस्त है।।
सफलता तक पहुँचने से पहले
करनी पडेगी तम्हारी उपासना
आज भी प्रभु तुम्हारी
हर प्राणी मे है वासना।।
जाने कब मेरे अक्षरो को
शब्द मिलेंगे ।।
जहाँ मेरे सपनों के
घर रहेंगे ।।
मेरे पन्नों पर भी
एक कहानी होगी
मेरी पहचान भी
अब न अनजनी होगी ।।
ज्ञान की बोछार मे
भीगा आज विश्वास है।
कर्म की आड़ मे
पहचाना तु भाग्य है।।
गुंजन द्विवेदी
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