किसी को समझा पाना , आसान नहीं होता।
सितारों को चमकने के लिए भी, रात चाहिए।
मुझे भी इस जग को जीतने के लिए ,
तुम्हारा साथ चाहिए।
शायद तुम समझ पाते।
हम वो सब, तुम से कह पाते।
जो भावनाऐंं , नई उमंगे लिए अंदर ही रहती है।
चाह कर भी , बाहर नही निकलती है।
साँस लेकर , सब कुछ सहता हूँ।
सब देखकर ,कुछ नहीं कहता हूँ।
पर विश्वास है मुझे, वह वक्त आऐगा ।
जब सब कोई मुझे समझ पाऐगा ।
जैसे हर दिन के बाद रात आएगी।
तुम्हारी जुबान पर हर बार मेरी बात आएगी।
तुम चाह कर भी अपने आपको ,
नही रोक पाओगे ।
बिना पुछे ही सब कुछ कह जाओगे।
काश , मैं तुम्हें विश्वास दिला पाता ।
अपने सपनों की दुनिया मे घुमाने ले जाता।
वैसे तो लिखने का शौक नहीं है मुझे,
वह तो लिख दिया हमने कुछ कहने को तुझे
इसमें गलती नहीं है हमारी
जिस से घायल हुए हम
वह नजरें थी तुम्हारी
समझ नहीं आ रही थी कौन सी है बीमारी
क्योंकि याद बहुत आती थी तुम्हारी
इसी बीच कभी कभी आंसू भी निकला करते थे
शायद इसलिए कुछ लिख दिया करते थे
अब रोने की जरूरत नहीं पड़ती है
क्योंकि दिल जैसी टोकरी में रखी अब डायरी ही सहती है.
जब उदास हो उसे पढ़ करता हूं
या कभी रोना आए एक और पेज भर दिया करता हूं
तुम्हारा साथ न होते हुए भी ,
होने की कल्पना करता हूँ।
जवाब जानते हुए भी,
तुम्हें पाने की इच्छा जाहिर करता हूँ ।
अगर तुम्हें न पा सका,
तो जीवन रस अधुरा रहेगा।
किस्मत भी मुझे "सपनों का दिवाना "कहेगा ।।
very lovely and nice poem
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