Thursday, May 16, 2019

विद्यार्थी

मै आने वाले कल का सार्थी हूँ।
मैं एक विद्यार्थी हूँ।
मुझ मे कोई अंश नहीं है भय का।
लेकिन मैं लालिमा जरूर हूँ सूर्योदय का।।

इस जग को पार करने मे।
हमने तैराकी सीखा है।
कितनो को तो हमने।
नौका से पार होते देखा है ।।

अपने परिवार के खुशी का लोर हूँ मैं।
दुनिया संग अपने घर का भोर हूँ मै।
इस अँधेरे रात मे प्रकाश का आभाव हूँ मै।
लेकिन दीपक के ज्योति सा प्रभाव हूँ मैं ।।

विद्यार्थी का सीखना सर्वप्रथम धर्म है।
केवल ज्ञान अर्जित करना ही हमारा कर्म है।
सबकुछ धन नहीं ,यह हमारा भ्रम है।
फिर भी हमारे देश मे अवसर के क्या क्रम है ।।

अब बेरोजगारी नहीं,
रोजगार मे घटाव दिखाई दे रहा है ।
हमारी सरकार से केवल ,
बचाव सुनाई दे रहा है ।

यह कहने के लिए ,मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ।
क्योंकि मैं एक विद्यार्थी हूँ ।
मै आने वाले कल का सार्थी हूँ।
मैं एक विद्यार्थी हूँ।
मुझ मे कोई अंश नहीं है भय का।
लेकिन मैं लालिमा जरूर हूँ सूर्योदय का।।
                                  गुंजन द्विवेदी

Monday, May 13, 2019

अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।

बच्चों की छुट्टियों मे भी नजर नहीं आऊँगा
अब लोगों के फार्म हाऊस पर ही दिख पाऊँगा
शुध्द दूध, दही, घी क्या खाओगे
यहाँ तक की शुध्द आक्सीजन भी नहीं पाओगे।।

लेकिन मेरा मित है कहता, मुझे भी शहर आना है
कुछ दिन बुढी माँ का ,बोझ नहीं उठाना है
और मुझे भी बच्चों को , शहर मे पढाना है
बस यही सोचता आज हमारा जबाना है ।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।

गाँव के छोटे किसानों को मत मिटाओ
क्योंकि कोई बडा, किसान नहीं दिखता
बिना अनाज के हमें से कोई
इंसान नहीं टिकता ।।

मैं कहु तो ,मेरे गांव को शहर मत बनाओ
बस कुछ सुविधा वहाँ उपलब्ध कराओ
ऐसा न हो तो ,मेरे शहर को ही गांव बना दो
भले ही एक नया GST ग्राम सर्विस टैक्स लगा दो ।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।
               गुंजन द्विवेदी ।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता ।।

यह शोर शराबा मेरा पिछा नहीं छोडता
अब मन करता है, मै ही शहर छोडता
कहाँ-कहाँ मैं भग के रहने जाऊँगा
अब गाँव भी कहता, मै भी जल्दी शहर बन जाऊँगा।।

बच्चों की छुट्टियों मे भी नजर नहीं आऊँगा
अब लोगों के फार्म हाऊस पर ही दिख पाऊँगा
शुध्द दूध, दही, घी क्या खाओगे
यहाँ तक की शुध्द आक्सीजन भी नहीं पाओगे।।

लेकिन मेरा मित है कहता, मुझे भी शहर आना है
कुछ दिन बुढी माँ का ,बोझ नहीं उठाना है
और मुझे भी बच्चों को , शहर मे पढाना है
बस यही सोचता आज हमारा जबाना है ।।

गाँव के छोटे किसानों को मत मिटाओ
क्योंकि कोई बडा, किसान नहीं दिखता
बिना अनाज के हमें से कोई
इंसान नहीं टिकता ।।

मैं कहु तो ,मेरे गांव को शहर मत बनाओ
बस कुछ सुविधा वहाँ उपलब्ध कराओ
ऐसा न हो तो ,मेरे शहर को ही गांव बना दो
भले ही एक नया GST ग्राम सर्विस टैक्स लगा दो ।।
        गुंजन द्विवेदी ।

Wednesday, May 8, 2019

तुमको देख रोम भी हर्ष मनाता ।।

तुमको देख रोम भी हर्ष मनाता
इस भाव को ओठ भी रोक न पाता
जाने तुम कैसी बला हो
ईश्वर की अनोखी कला हो

तुम्हारे नज़दीक आकर
अज़ीब खुशी का आलम रहता है
बातें तो बहुत है
पर मन ही कहता रहता है

अपनी सुन्दरता का हमें भी राज दे
वरना मेरी ज़िन्दगी आकर साज़ दे
तुम मे हमने अपने को देखा है
क्या हम भी तेरे हाथ की रेखा है

हर एक पल मे तेरी आस है
मेरे अपनो के बाद
तु दुसरी जीने की सासँ है
न जाने कैसा यह एहसास है

तुमको देख रोम भी हर्ष मनाता
इस भाव को ओठ भी रोक न पाता
जाने तुम कैसी बला हो
ईश्वर की अनोखी कला हो ।।
                            गुंजन द्विवेदी

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