जिंदगी का एक एक पल
सपनों मे संयोजा था ।
तुम्हारे मेरे साथ होते हुए भी
मैंने तुम्हें ढूँढा था ।
आसमान की उडान मे
उडने से भी सेहमता था ।
शिखर पर पहुँचने से पहले
फडफडाने से भी डरता था ।
आज के इस विश्वास पर
कल की कोई आस न थी ।
बरसात के इन बूँदो की
संसार को कोई प्यास न थी ।
उन आँखों की चमक चाहिए
जो बेतहाशा उम्मीद रखते है ।
मुझे दिलासा देकर
खुद सारे सितम सहते है ।
मुझे रोज़ समझाने वाले
आज कुछ न कहते है ।
फिर भी उनकी आँखों की झलक
मुझे वो सबकुछ कहते है ।
जल्दी , मैं उनके ख्वाब पुरे करता
खाश उनकी झोली खुशीयाँ से भरता ।
मैं भी कल आम नहीं
कुछ खास रहता ।।
जिंदगी का एक एक पल
सपनों मे संयोजा था ।
तुम्हारे मेरे साथ होते हुए भी
मैंने तुम्हें ढूँढा था ।
आसमान की उडान मे
उडने से भी सेहमता था ।
शिखर पर पहुँचने से पहले
फडफडाने से भी डरता था ।
गुंजन द्विवेदी